दहेज, शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रूण हत्या और विवाह में फिज़ूल खर्ची जैसी समस्याओं से है निपटना
इन गंभीर समस्याओं से लड़ना है संस्था का उद्देश्य:
मनुष्य अपने विचारों से ही समस्याओं को जन्म देता है। समाज की गंभीरतम समस्याएं भी उसमें रहने वाले कुछ नकारात्मक विचारधारा वाले लोगों की देन होती हैं, जिससे अनेक लोग प्रभावित हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में समाज के सकारात्मक सोच रखने वाले लोगों की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण और जिम्मेदारी वाली हो जाती है। तब हम सिर्फ अपने स्वार्थ या हित के लिए नहीं सोच सकते वर्ना ऐसी समस्याएं लाइलाज हो सकती हैं। हम अगर मौजूदा भारतीय समाज की बात करें तो यहां माहौल ऐसा हो चुका है कि हर किसी को अपनी समस्याओं से लड़ना ही भारी पड़ रहा है, ऐसे में पलटकर किसी और का दुख बांटना या कम करना किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं। लेकिन सकारात्मक सोच से दृढ़ निश्चय कर मानवता के लिए कुछ कर गुजरने वाले लोग हर कठिन चुनौती के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। ऐसा ही एक प्रयास कर रही है ‘राईपुर धर्मलक्ष्मी जनसेवा ट्रस्ट‘ नामक सामाजिक संस्था जिसका उद्देश्य है- दहेज, शिक्षा, स्वास्थ्य, भ्रूण हत्या और विवाह में फिज़ूल खर्ची जैसी अति गंभीर हो चुकी समस्याओं से कम आय वाले वर्ग को बचाना और उनकी सहायता करना। विशेषकर महिला वर्ग को ज्यादा से ज्यादा मदद पहुंचे यही ट्रस्ट का ध्येय है।
दहेज प्रथा ने करोड़ों भारतीयों के जीवन को किया है। प्रभावितः
समाज में लगभग हर प्रथा की शुरूआत लोगों की भलाई के लिए ही होती है लेकिन समाज के अति स्वार्थी, धूर्त और मक्कार लोग उसे गलत दिशा में ले जाने का प्रयास करते हैं जिसकी वजह से अक्सर बरसों तक सुपरिणाम देने वाली प्रथाओं में भी विकृतियां आ जाती हैं और वे समाज के लिए एक कलंक बन जाती हैं। दहेज प्रथा इसका उत्कृष्ट उदाहरण है। समाज के कुछ प्रबुद्ध लोगों ने सदियों पहले यह महसूस किया होगा कि विवाह संस्कार के पूर्ण होते ही नवविवाहित जोड़ों पर तुरंत अनेक जिम्मेदारियों का भार आ जाता है। इस बड़ी चुनौती से निपटने में अनेक लोग पूरी तरह सक्षम नहीं होते इसलिए उन्हें अपना नया घर संसार चलाने में अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। इस समस्या से उन्हें निजात दिलाने के लिए क्यों न दूल्हा-दूल्हन के करीबी लोग, रिश्तेदार व हितैशी व्यक्ति मिलकर उन्हें कुछ गृह उपयोगी बेहद आवश्यक वस्तुएं भेंट करें तो उनका आर्थिक भार कम होगा और इससे समाज में आपसी सहयोग की भावना भी बनी रहेगी।
जब यह प्रथा शुरू हुई तो इससे नवविवाहित जोड़ों को एक अच्छा, सुखमय जीवन शुरू करने में बहुत सुविधा होने लगी।… लेकिन धीरे-धीरे यह जिम्मेदारी वधु के घरवालों पर अधिक डाली जाने लगी और बदलते वक्त के साथ इसने अनिवार्य दहेज का रूप ले लिया। इसके लिए पति व उसके घरवालों पर अधिक से अधिक दहेज देने के लिए दबाव डाला जाने लगा। घृणित मानसिकता वाले लोग वधु पक्ष को स लगे और उन पर प्राण घातक हमले होने लगे। तब समाज के प्रबुद्ध जन ऐसे लोगों के खिलाफ उठ खड़े हुए। दहेज प्रथा के विरोध में अनेक आंदोलन चलाये जाने लगे और सरकारों ने कई नियम-कानून बनाए लेकिन आज भी यह समस्या कम नहीं हो पा रही है। इसी बीच कुछ सामाजिक संस्थाओं ने इस समस्या का नया तोड़ निकाला, उन्होंने ‘सार्वजनिक सामूहिक विवाह ‘ कार्यक्रम का आयोजन कर जरूरतमंद लोगों का विवाह संस्कार पूर्ण करवाकर उन्हें आवश्यक घरेलू वस्तुएं भी मुफ्त में प्रदान करने की सुखद व सफल परंपरा शुरू की। आज अगर हमारा समाज इसे पूरी तरह से अपना ले तो दहेज प्रथा की समस्या स्वतः ही समाप्त हो जाएगी।

'शिक्षा' हर व्यक्ति के लिए बेहद आवश्यक है:
ज्ञान और शिक्षा के मामले में कभी हम विश्व गुरू कहे जाते थे। नालंदा दुनिया का प्रथम विश्वविद्यालय था जहां उच्च शिक्षा प्राप्त करने सारी दुनिया से विद्यार्थी भारत आया करते थे। आज हम विदेशों में शिक्षा लेकर स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं । आज़ादी के सत्तर वर्ष बाद भी हमारे देश में करोड़ों लोग अशिक्षित हैं इनमें लड़कियों की स्थिति सबसे बुरी है। लोगों की मानसिकता बन गई है कि लड़की को तो पराये घर जाना है उसे सामान्य या ज्यादा पढ़ाई करवाने से क्या फायदा? यह बेहद निराशाजनक स्थिति है, क्योंकि लड़कियों को शिक्षा दिलाना बेहद जरूरी है। एक लड़की को अपने जीवन में अनेक जिम्मेदारियां निभानी होती हैं जिनमें शिक्षा उनके बहुत काम आती है। वे बेटी ही नहीं, एक पत्नी और भविष्य की एक मां भी होती है। एक अशिक्षित लड़की कैसे अपने अधूरे ज्ञान व शिक्षा से अपने घर का भलिभांति नियोजन कर सकती है। अज्ञानी मनुष्य के लिए समस्याएं हमेशा बाहें फैलाए खड़ी रहती हैं। अगर किसी देश का सही ढ़ंग से निर्माण करना है तो वहां की महिलाओं का शिक्षित होना बेहद जरूरी है।
एक सफल व अच्छा जीवन जीने के लिए स्वस्थ रहना बहुत जरूरी:
‘आप फिट हैं तो हिट हैं’ यह कहावत हर व्यक्ति पर लागू होती है। लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां दुनिया के एक तिहाई कुपोषित बच्चे रहते हैं ? इसमें लड़कियों की तादाद अधिक है। एक कमजोर अस्वस्थ बच्ची कैसे भविष्य में अच्छी पत्नी व मां बन सकती है? ऐसे देश का भविष्य उज्वल होना नामुमकिन है। अगर हमें अपना देश मजबूत व विकसित बनाना है तो सबसे पहले देश की लड़कियों को स्वस्थ व मजबूत बनाना होगा। वर्तमान में अनेक घर ऐसे हैं जहां एक ही घर में लड़कों के मुकाबले लड़कियों को हर मामले में पीछे रखा जाता है, उसमें खाने-पीने जैसी बुनियादी आवश्यकताएं भी शामिल हैं। ऐसे घरों में अच्छा व पौष्टिक खाना पहले लड़कों को दिया जाता है, अगर उसमें से कुछ बचा तो फिर बेचारी लड़की की बारी आती है। देश के लोगों को इस मानसिकता से निकालने के लिए एक बड़े राष्ट्रव्यापी अभियान की जरूरत है इसलिए ऐसे कार्यों में समाजसेवी संस्थाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है।
भ्रूण हत्या एक घृणित अपराध है:
देश के अंदर पिछले कुछ दशकों में लड़कों की पैदाइश को लेकर लोगों के मन में जो आकर्षण बढ़ा है, उसकी परिणिती है गर्भ के दौरान लड़कियों की हत्या, जिसे हर हाल में हम एक गंभीर घृणित अपराध कहेंगे। टेक्नोलॉजी के विकास ने इस अपराध को जन्म दिया है, लेकिन इसके पीछे लोगों की संर्कीण सोच और अज्ञानता ही है जो बच्ची का इस दुनिया में आने से पहले ही हनन कर देते हैं। यही कारण है कि आज राजस्थान, हरियाणा व पंजाब जैसे राज्यों में लड़कियों का लड़कों के मुकाबले अनुपात इतनी तेजी से गिरा है। यह समाज के साथ ही नहीं प्रकृति के साथ भी खिलवाड़ है, जिसे तुरंत रोका जाना बहुत जरूरी है। समाजसेवी जागरूकता अभियानों ने सरकार पर इसके ख़िलाफ कड़े क़ानून बनाने का जो दबाव डाला है उससे इस अपराध पर कुछ हद तक रोक लगी है। लेकिन हमारे भ्रष्ट प्रशासन तंत्र के चलते मौजूदा क़ानून ऐसे अपराधों पर पूरी तरह रोक लगाने में असफल रहा है। । अगर समय रहते इस बुरी मानसिकता से देश को नहीं उबारा गया तो इस लिंग अनुपात असंतुलन के परिणाम बेहद गंभीर होंगे। वर्तमान समय में हमारे समाज में बलात्कार के बढ़ते मामलों के पीछे लिंग अनुपात असंतुलन एक बड़ा कारण है। इस समस्या को कड़े कानूनों के साथ सामाजिक जागृति अभियानों में तेजी लाकर कम किया जा सकता है।

अमीरों का दिखावा है विवाह में फिज़ूल खर्ची का मूल कारण:
मानव समाज में स्त्री-पुरूष के सम्माननीय व गरिमामय मिलन के लिए ‘विवाह’ जीवन का एक अनिवार्य संस्कार या विधि बन चुका है। यूं तो हर धर्म व जाति में विवाह का कार्यक्रम संपन्न करने की औपचारिका पूर्ण करना कोई बहुत अधिक खर्चीला कार्य नहीं है लेकिन दिखावे और आडंबरों ने इसे एक बेहद खर्चीला आयोजन बना दिया है, जिससे ख़ासकर वधु पक्ष वालों की तो जैसे कमर ही टूट जाती है। अमीर लोगों ने इसे अनेक गैरजरूरी चोंचलों से जोड़कर आज विवाह को इतना महंगा आयोजन बना दिया है जो मध्यम व निम्न वर्ग के लिए बहुत भारी पड़ता है। यह आयोजन वर-वधु का घर आबाद करने के लिए होना चाहिए लेकिन होता ठीक इसके विपरीत है। आज हम विवाह करने वाले कई अविभावकों को कर्जदार व बर्बाद होते हुए देख सकते हैं और ऐसे लोगों की तादाद समाज में बहुत बड़ी है। दहेज प्रथा इन्हीं दिखावा पसंद लोगों की देन है जिससे असंख्य महिलाओं की जिंदगी दांव पर लग गई है। आदर्श विवाह और सामूहिक विवाह को बढ़ावा देकर हम समाज को विकृत कर रही इस गंभीर समस्या से निजात पा सकते हैं। आदर्श विवाह तो स्वेच्छा पर निर्भर है लेकिन सामाजिक संस्थाओं द्वारा होने वाले सामूहिक विवाह आयोजनों को अगर हम बढ़ावा दें तो एक दिन हर अमीर-गरीब व्यक्ति इससे जुड़ने पर मजबूर हो जायेगा और तभी सच्चे समाजवाद और समरूपता का देश में जन्म होगा।
‘राईपुर धर्मलक्ष्मी जनसेवा ट्रस्ट‘ ने इन पांचों गंभीर सामाजिक समस्याओं को अपने राष्ट्रव्यापी अभियान का मुख्य उद्देश्य बनाया है। इस विशाल मंच के जरिये आप सब इस समाजसेवी पुण्य कार्य का हिस्सा बन सकते हैं। बस, एक दृढ़निश्चय की जरूरत है कि हम जिस समाज का हम हिस्सा हैं उसके भले के लिए अपनी ओर से कुछ योगदान अवश्य दें। यह योगदान तन, मन, धन, वचन या अन्य किसी भी मनोभाव से दिया जा सकता है।