हमारी एक छोटी सी मदद कई घर बसा सकती है.
मानव से समाज बनता है और समाज से देश । भारत में अनेक तरह के समाज हैं और उसमें रहने वाले लोगों के आर्थिक स्तर में इतनी अधिक भिन्नता पाई जाती है जिसे देख दूसरे देशों के लोग हैरान रह जाते हैं। इस भिन्नता में हमारी एकता सबको आश्चर्य में डाल देती है। यह हमारी एकजुटता की ही शक्ति है कि हमारा देश बड़ी से बड़ी समस्या का सामना आज बिना विदेशी सहायता कर सकता है। यह सब इसलिए संभव हो पाया है क्योंकि भारत की संस्कृति और परंपराएं इतनी समृद्ध व विकसित अवस्था में हैं। मानवता की बुनियाद पर खड़ा हमारा सामाजिक ढांचा इतना मजबूत है कि देशवासी हर मुसीबत या समस्या के समय उन अनजान लोगों की मदद के लिए भी दिल खोलकर आगे आते हैं जिनसे वो कभी मिले भी नहीं होते।
विवाह मानव जीवन में ऐसा अनिर्वाय संस्कार है जिससे हमारे समाज के अधिकांश लोगों को गुजरना ही पड़ता है। विवाह की प्रक्रिया आज इतनी ज्यादा ख़र्चीली हो चुकी है जिसके कारण अच्छे से अच्छे धनवान लोगों के भी पसीने छूट जाते हैं, मध्यम व निम्न वर्ग की क्या हालत होती है इससे हम सब परिचित हैं। अगर वर्तमान समय में एक कन्या का विवाह करना हो तो सीमित आय वर्ग वाले व्यक्ति की सारे जीवन की कमाई खर्च हो जाती है और कई बार वह बड़े क़र्ज में भी डूब जाता है, जिसका बोझ आगे आने वाली पीढ़ी भी झेलती है। लेकिन घर में कन्या है तो एक न एक दिन उसका विवाह करना ही पड़ता है, ऐसी स्थिति में अगर हमारे समाज के कुछ लोगों की मदद के हाथ आगे बढ़ते हैं तो बेटी के अविभावकों की हिम्मत बहुत बढ़ जाती है।

विवाह के न्यूनतम खर्चों को वहन कर पाना भी मुश्किल:
वर्तमान मंहगाई के दौर में शादी जैसा एक खर्चीला कार्यक्रम संपन्न करने में अधिकांश लोगों को अनेक प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ख़ासकर बेटी के विवाह में अविभावकों की जैसे कमर ही टूट जाती है। टेंट वाला, केंटीन वाला, बाजेवाला से लेकर कपड़े, जेवर, उपहार, बारातियों का स्वागत और अनेक तरह की रस्म अदायगी में होने वाले अनिवार्य खर्चे बिना दहेज डिमांड वाली शादियों में भी इतने भारी पड़ते हैं कि घरवालों की सारी कमाई स्वाहा हो जाती है। यही कारण है कि आज घर में बेटी पैदा होने पर लोगों के मन उदास हो जाते हैं। सब जानते हैं कि बेटी के विवाह की जिम्मेदारी पूरी करना वर्तमान समय में कितना कठिन है। जबकि यह भी सच है कि बेटियां अपने मां-बाप का साथ बेटों के मुकाबले ज्यादा अच्छी तरह निभाती हैं, यह सच जानने के बेटा होने पर ज्यादा खुश होते हैं ?
अमीर लोगों के दिखावे भरी रस्मों ने विवाह को किया महंगाः
अमीर लोगों के लिए विवाह अपनी अमीरी दिखाने का अवसर होता है इसलिए वह विवाह की हर रस्म व रिवाज को निभाने में खूब पैसा खर्च करते हैं। अमीरों ने अपनी दौलत की ताक़त दिखाने के लिए अनेक तरह के गैर जरूरी खर्चीली रस्मों रिवाज को जन्म दिया है जो मध्यम व निम्न वर्ग के लोगों पर अब बहुत भारी पड़ते हैं। लेकिन उन्हें निभाना हर वर्ग के लिए जरूरी हो गया है। सनातन धर्म के मुताबिक पाणिग्रह संस्कार पूर्ण कर लड़के-लड़की का विवाह संपन्न हो जाता है, जिसमें बहुत ही सामान्य खर्च आता है लेकिन आज विवाह के साथ इतने सारे आडंबर जोड़ दिए गए हैं जिससे विवाह जैसा बेहद जरूरी संस्कार को पूर्ण करना बर्बादी का कारण बन गया है।
विवाह खुशी का अवसर है, इसे बर्बादी का कारण न बनाएं:
किसी भी युवक व युवती के लिए विवाह एक नए खुशी भरे जीवन की शुरूआत होती है। वे एक ऐसे नए अनुभव और रोमांच से गुजर रहे होते हैं जिसकी यादें वो जीवनभर संजोये रखना चाहते हैं। लेकिन वही विवाह किसी के लिए आर्थिक बोझ बनकर उसकी बर्बादी का कारण बन जाय तो ऐसे में पति-पत्नी का जीवन कभी सुखमय नहीं हो सकता? यह छोटी सी व्यवहारिक बात हमारे दिखावे पसंद समाज को समझ नहीं आती और महंगी शादियों की रस्म पर कोई लगाम लगाने की कोशिश नहीं करता। क्योंकि इस समाज को तो वही ताक़तवर संपन्न लोग चलाते हैं जिन्हें विवाह के नाम पर अपने दौलतमंद होने का दिखावा करना है। समाज के कुछ जागरूक लोगों ने इन महंगी शादियों के खिलाफ एक मुहीम चलाई। हुई है जिससे कुछ लोगों की मानसिकता बदली है और वे सादे यानि आदर्श विवाह की वकालत करने लगे हैं। लेकिन ऐसे लोगों की संख्या हमारे समाज में इतनी कम है जिनके बल पर हम इस दिशा में किसी बड़ी क्रांति की उम्मीद नहीं कर सकते।

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फिर क्या है उपाय ?
हर समस्या का कोई न कोई समाधान अवश्य होता है, अगर हमारे अंदर उससे मुक्ति की इच्छाशक्ति मौजूद हो। हमारे समाज के ही कुछ जागरूक लोगों ने इसका एक मजबूत उपाय खोजा है, लेकिन यह अभी अपनी प्रक्रिया के आरंभिक चरण से गुजर रही है। लोग जैसे-जैसे इसका महत्व समझेंगे और इसे अपनाएंगे, यह समस्या खुद व खुद सुलझ जाएगी और वह उपाय है ‘सार्वजनिक सामूहिक विवाह‘ का आयोजन। कई समाजसेवी संगठन इस दिशा में बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। वे दानदाताओं के धन से ऐसे सामूहिक विवाहों का आयोजन इतने भव्य और गरिमामय तरीके से करते हैं जिसकी सहज कल्पना भी कम आय वर्ग का व्यक्ति नहीं कर पायेगा। ऐसे सामूहिक विवाह कार्यक्रमों में सामाजिक संस्थाओं द्वारा एक साथ कई युवक-युवतियों को पारंपारिक वैवाहिक रस्म के साथ विवाह सूत्र में बांधा जाता है, साथ ही ये संस्थाएं इन नवविवाहित जोड़ों को नवजीवन आरंभ करने हेतु आवश्यक गृह उपयोगी वस्तुओं का दान भी करती हैं जिससे उन्हें तुरंत एक अच्छा सुखी वैवाहिक जीवन शुरू करने में सुविधा हो।
वर्तमान में कई राज्यों की सरकारें भी ऐसी आयोजनों में हर संभव सहायता करती हैं और उन्हें प्रोत्साहन राशी प्रदान करती हैं। अगर हमारे समाज के नियंता एकजुट होकर हर विवाह के लिए इसी प्रक्रिया को अनिवार्य बना दें तो दहेज, विवाह में फिजूल खर्ची और दिखावे भरे आडंबरों की समस्या से हमारे समाज को हमेशा के लिए मुक्ती मिले जायेगी। ऐसी सामाजिक संस्थाओं को हर व्यक्ति द्वारा तन, मन व धन से दिल खोलकर मदद देनी चाहिए, क्योंकि आपकी एक छोटी सी मदद भी कई घरों को बसा सकती है।