दहेज का दंश मिटा रहा अनेक वंश
आज हम बड़ी आसानी से कह सकते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, लेकिन इस अवस्था तक पहुंचने की प्रक्रिया बड़ी लंबी रही है। प्राकृतिक रूप से एकांत पसंद इंसान सुरक्षा के उद्देश्य से अपने आरंभिक काल में ही समूहों में रहने लगा था । इन समूहों ने धीरे-धीरे समाज का रूप ले लिया । मानव समाज जब कुछ सभ्य हुआ तो उसने स्त्री पुरुष के साथ रहने की आवश्यकता को विवाह बंधन में बांधने की जरूरत महसूस की, ताकि उस रिश्ते की पवित्रता को बरकरार रखा जा सके ।

दुनिया भर में फैले अलग-अलग समाजों में विवाह के भिन्न- भिन्न स्वरूप व रीति रिवाज विकसित होने लगे। जब मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ने लगी तो विवाहात पश्चात पति पत्नी को अपना घर बसाने और सुखी जीवन व्यतीत करने के लिए गृह उपयोगी साधनों की तुरंत पूर्ति की समस्याएं बढ़़ने लगी । तब समाज के लोगों में ऐसे नवविवाहित जोड़ों की सहायता करने का चलन शुरू हुआ । दूल्हा दुल्हन के घरवालों के अलावा तब उनके समाज के सभी करीबी लोग रिश्तेदार नवविवाहित जोडे़ कि हर संभव मदद करने का प्रयास करते थे, जिसके कारण नवविवाहित की आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ बंट जाया करता था ।
वक्त गुजरने के साथ दुनिया भर के समाजों में पुरुष की प्रधानता बढ़़ती गई और स्त्रियों का सामाजिक स्तर घटता गया । इसका असर वैवाहिक प्रक्रिया पर भी पड़ा (खासकर भारत जैसे देशों में) इस बदलते वक्त के साथ नवविवाहिता की मदद का अधिक भार दुल्हन यानी लड़की के घरवालों पर डाला जाने लगा और धीरे-धीरे इसने अनिवार्य दहेज का रूप ले लिया।
समाज के स्वार्थी और लालची लोगो ने दहेज प्रथा के नाम पर लडकी के घरवालो पर अधिक से अधिक दबाव बनाकर इसे ज्यादा से ज्यादा अंदर करने का एक ऐसा साधन बना लिया जो आज मानव समाज पर ऐसा कलंक है जिसने अनगिनत स्त्रियों की जान ली है और असंख्य घर को असमय उजाडा़ है । आज ऐसी स्त्रियों की संख्या बेहिसाब है जिनका जीवन दहेज के कारण पती के घर मे रहते हुए भी नर्क से बत्तर हो चुका है । विवाह के पवित्र रिश्ते को मानव ने अपने स्वार्थ व लालच के दुर्गुणो के कारण अज्ञानतावश एसे अमानवीय, क्रूर व संवेदना विहीन संबंधो मे बदल दिया है जिसमे दहेज के नाम पर हर वर्ष हजारो निर्दोष स्त्रियो को अपनी जान गवानी पडती है और लाखो घर बर्बाद हो जाते है?

भारत मे तीन वर्षे मे 24771 मौतों का कारण दहेज:
हमारे देश में आज दहेज प्रथा इतनी विकृत रूप ले चुकी हैै यहां हर वर्ष इसकी वजह से बड़ी तादात में स्त्रियां दहेज की वेदी पर चढ़ जाती हैं। सन 2012 से 2014 के बीच मात्र तीन वर्षो में 24771 महिलाएँ दहेज़ के करण अपनी जान गवा चुकी हैं। इसमें सिर्फ पुलिस के द्वारा दर्ज घटनाए शामिल हैं वर्णा यह आंकड़ा और भी खतरनाक दिखाई देता। इन तीन वर्षो में दहेज़ की धारा 304 के अंतरगर्द भरत में 8 लाख से अधिक मामले दर्ज किए गए । इन अधिकृत आंकड़ो को देखकर सहज ही अंदाज लगाया जा सकता हैं की वर्तमान में हमारे समाज में दहेज़ प्रथा कितना भयावाह रूप ले चुकी हैं।
दहेज प्रथा के खिलाफ आंदोलनो से भी नहीं रुक रही घटनाएं :
दहेज़ का दानव स्वरूप जब विकराल रूप धारण करने लगा तो समाज के कूकभ जागरूक लोगो ने इसके खिलाफ आवाजे उठाना शुरु किया। इस कुप्रथा के विरुद्ध उठने वाली आवाजो के अनेक सामाजिक संगठोने को जन्म दिया, जन्होने समय-समय पर विभिन्न जगहों पर आंदोलन कर दहेज़ आपराधों के विरोध मजन आपनी आवाज़ बुलंद की और शासन व प्रशासन पर दहेज़ अपराधियो के विरुद्ध कड़ी कारवाई का दबाव डाला जाता रहा। इन संगठनों द्वारा दहेज प्रथा के विरुद्ध समाज के लोगों को जागरूक करने की भी अनेक प्रयास हो रहे हैं लेकिन इसके बावजूद महिलाओं को दहेज के लिए प्रताड़ित करने की घटनाएं कम होने का नाम नहीं ले रही। दहेज पीड़ित महिलाओं का आंकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। अब इसके खिलाफ लड़ने के लिए महिलाओं ने भी अपने कई संगठन बना लिया है और उनके द्वारा सरकार पर दहेज़ अपराधों के विरुद्ध कड़े नियम कानून बनाये जाने का लगातार दबाव डाला जाता रहा हैं।

1961 में सबसे पहले दहेज निरोधक कानून अस्थित्व में आया :
दहेज के खिलाफ हमारे देश में कई कानून बने। सबसे पहले 1961 में दहेज निरोधक कानून बना जिसके अनुसार दहेज लेना और देना दोनो ही गैर कानूनी घोषित किए गए। इस कानून के अंतर्गत दोषियों को 5 वर्ष की कैद 15,000 रुपये का जुर्माना भरना पड़ता हैं। 80 के दशक में जब दहेज हिंसा के मामले बढ़ने लगे और इसके खिलाफ आंदोलनइसके खिलाफ आंदोलनों में तेजी आई तो भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में धारा ‘498- ए’ वजूद में आई।
यह धारा तब लगाई जाती है जब किसी महिला पर उसका पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता की गई हो। इस कानून के अंतर्गत दोषी व्यक्ति को 3 साल तक की सजा और जुर्माना देना होता। सन 1985 मैं दहेज निषेध नियमों को तैयार किया गया था। इन नियमों के अनुसार शादी के समय दिए गए उपहारों की एक हफ्ताएक हस्ताक्षरित सूची बनाकर रखा जाना चाहिए।
इस सूची के प्रत्येक उपहार, उसका अनुमानउसका अनुमानित मूल्य, जिसने भी यह उपहार दिया है उसका नाम और संबंधित व्यक्ति से उसके रिश्ते का एक संक्षिप्त विवरण होना चाहिए। इसके अलावा धारा 406 के अंतर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों को 3 वर्ष की कैद अथवा जुर्माना या दोनों हो सकते हैं, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं । धारा 304-बी के अंतर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम 7 वर्षों से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है, यदि किसी लड़की के विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया था।
दहेज क़ानूनों का व्यवहारिक जिंदगी में दुरूपयोग होता है अधिकः
हमारे देश में सरकारें आम लोगों के दबाव में आकर नियम व कानून बना तो देती हैं लेकिन उस पर अमल कैसे हो रहा है उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देतीं। यही वजह है कि आज दहेज कानून बरबंड किस्म की औरतों का एक हथियार बन गया है जिसका इस्तेमाल वे अपने पतियों को परेशान या ब्लैकमेल करने में अधिक करती हैं, जबकि वास्तविक दहेज पीडिताएं तो न्याय की आस में कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगा-लगा कर ही थक जाती हैं या उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ती है। ऐसी स्थिति में सच्चे न्याय की उम्मीद हमारी व्यवहारिक जिंदगी में बहुत कम रह जाती है जिसका फायदा दहेज के लालचियों को मिलता है।

आखिर कैसे होगा समस्या का समाधान ?
दहेज पीड़िताओं को सही न्याय कैसे मिले ? यह यक्ष प्रश्न हमारे समाज में वर्षों से गूंज रहा है लेकिन कई स्तरों पर की गई कोशिशों के बावजूद इस शर्मनाक गंभीर समस्या पर लगाम नहीं लग रही है, समाधान तो बहुत दूर की बात है। दरअसल यह समस्या कानूनी से अधिक मानसिक समस्या है। पिछले कुछ दशकों से इंसान का झुकाव आसनी से या मुफ्त में धन प्राप्ति के प्रति अधिक हुआ है। यह समस्या इन मुफ्तखोर लालचियों की ही देन है जिन्हें किसी भी रिश्ते का मोल सिर्फ़ धन-दौलत में ही नजर आता है, इन्हें वास्तविक या सच्चे रिश्तों का महत्व पता नहीं होता। ऐसी मानसिकता वाले लोग क्या जाने कि नारी लक्ष्मी का रूप होती है जिसका अनादर करने से सुख, चैन, आनंद और शांति जैसी अनमोल तत्वों से हम वंचित हो जाते हैं।
.लेकिन हर समस्या का समाधान है, दहेज प्रथा का असर कम करने के लिए ‘आदर्श विवाह पद्धति’ और ‘सामूहिक विवाह समारोह‘ को बढ़ावा देना बहुत जरूरी है। ये दोनों तरीके विवाह ख़र्च को कम करते हैं और दहेज प्रथा को दरकिनार कर नव विवाहित जोड़ों को एक सुखी जीवन व्यतीत करने में सहायक होते हैं। ‘आदर्श विवाह पद्धति‘ के अंतर्गत न्यूनतम खर्च में विवाह प्रक्रिया संपन्न हो सकती है जिसमें दहेज जैसी बुराई का कोई स्थान नहीं होता। वहीं ‘सामूहिक विवाह समारोह’ में वर-वधु के लिए गृह उपयोगी वस्तुएं दानदाताओं के द्वारा जुटाई जाती हैं जिससे कि नव विवाहित जोड़ा तुरंत एक अच्छा सुखी जीवन आरंभ कर सके। सरकार को विवाह के इन तरीकों को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन देना चाहिए और सरकार से जुड़े लोगों को खुद भी इससे जुड़कर समाज के लिए आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए क्योंकि दहेज का यह दंश आज हमारे समाज से अनेक वंशों के सुख, चैन और जीवन को लील रहा है।